चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक पद्मश्री सम्मानित नारायणदास जी महाराज ( त्रिवेणी वाले )

        राजस्थान के संत नारायणदासजी महाराज पद्मश्री से सम्मानित किया गया.  त्रिवेणीधाम के संत नारायणदास महाराज को अध्यात्म के क्षेत्र में दिल्ली राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री से नवाजा गया।  डिप्टी स्पीकर व शाहपुरा विधायक राव राजेंद्र सिंह ने कहा कि संत नारायणदास महाराज का कद इतना बड़ा है कि वे किसी दिव्यपुरुष समान है. धाम के बलदेव दास महाराज ने कहा कि संत नारायण दास को भक्त ही नहीं, सम्पूर्ण भारतवर्ष में संत समाज भी पूजता है। उन्होंने अपने गुरु के पास से  शिक्षा-दीक्षा ली और समाज सेवा में लग गए। और यही उनका प्रण भी है।
     पद्मश्री से सम्मानित
           क्या आपने ऐसा कभी सोचा है कि कोई व्यक्ति जो स्कूल नहीं गया हो लेकिन हजारों बच्चों को पढ़ा रहा हो? सुनकर थोड़ा अजीब लगा होगा कि भला कोई शख्स जो स्कूल नहीं गया वह कैसे किसी को पढ़ा सकता है. और  यहां तो हजारों बच्चों को पढ़ाने की बात हो रही है.आपको बता दें कि ऐसा सच में हो रहा है और ये कोई दूसरे देश में नहीं बल्कि अपने देश में ही हो रहा है.

         हिन्दुस्थान आध्यात्म की भूमि है.सदियों से कई आध्यात्मिक गुरु,आम जनों को जीवन का सही मार्ग दिखाते आ रहे हे.जिन्होंने अपना सारा जीवन स्वास्थ,कल्याण,अध्यात्म और उनकी बहेतरी को धर्म के रम में अपनाया है.९२ वर्षीय स्वामी नारायण दास जी ऐसे ही आध्यात्मिक गुरु है जी नि:स्वार्थ भाव से राजस्थान के लोको के लिए काम कर रहे है. समाज में समरसता और अध्यात्म के विस्तार में उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया हे, अवम उनके यही योगदान के लिए २०१८ में उन्हें देश के चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया


          स्वामी नारायण जी का जन्म राज्श्थान के एक छोटे से शहर शाहपुरा में गौड़ ब्राह्मण परिवार में  हुआ था. उनके माता जी(श्रीमती भूरी बाई जी ) पिताजी( श्रीरामदयाल जी ) भगवन दास जी के अनुयायी थे. बचपन में जब नारायण गुरु जी बीमार रहते थे तब उन्होंने भगवान से प्राथना की के यदि उनका बच्चा जीवत रहता हे तो वो अपना पूरा जीवन भगवान की सेवा में व्यतीत करेंगे. जब स्वामी नारायण जी स्वास्थ रहे,और उनके माता पिता ने अपना वचन निभाया अवम उन्हें 5 वर्ष की नाजुक उम्र में ही आश्रम भेज दिया.

            बहुत ही कम उम्र में उन्होंने सास्कृत का अध्ययन शुरू क्र दिया अवम उन्हें वेद और एनी हिन्दू ग्रन्ध को पढना और समझना प्रारंभ कर दिया.समय व्यतीत होते ही उन्होंने समाज में लोगो को वेद और ग्रंथो का ज्ञान बाटना शुरू कर दिया. नारायण दास जी के ज्ञान अवम वेदों प्रवचन से उनकी ख्याति बढ़ने लगी.
श्रीनारायण जी गुरु देव

             92 वर्षीय स्वामी नारायण दास कभी स्कूल तो नहीं गए लेकिन वह पिछले कई वर्षों से हजारों बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। स्वामी नारायण दास जी ने पांच कॉलेजों की स्थापना की और राजस्थान के पिछड़े क्षेत्रों में स्थित 25 से ज्यादा सरकारी स्कूलों को सहायता प्रदान की। इनमें से 2 कॉलेज लड़कियों के लिए हैं। नारायण दास जी ने 80 के दशक के शुरुआती दौर में आध्यात्मिक जानकारों की भूमिका को समझा। उन्होंने यह महसूस किया कि वह लोगों की जिंदगी में पूर्ण रूप से बदलाव ला सकते हैं और इसका तरीका था आध्यात्म के रूप से, शिक्षा के जरिए और स्वास्थ्य के माध्यम से। आश्रम में एक वेद स्कूल भी है जिसे उत्तरी क्षेत्र के सबसे अत्याधुनिक वेद स्कूल के रूप में माना जाता है। यहां पर छात्रों को वेदों से जुड़ी आध्यात्मिक और वैज्ञानिक बातें सिखाई जाती हैं.

            प्राप्त माहिती के अनुसार १९९८ में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरो सिंह शिखावत जी ने एक संस्कृत विश्वविद्यालय की घोषणा की थी , मगर फंड की कमी के कारण २००२ तक इसकी स्थापना नही हो पायी. जब स्वामी जी को ये बात की जानकारी मिली तब उन्होंने स्वैच्छिक रूप से ५० करोड़ रुपये की राशी विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए उपलब्ध कराया और साथ ही यह अनुरोध किया की उनके नाम को प्रदशित न किया जाए. उसके बाद विश्वविद्यालय का नाम उनके गुरु जगतगुरु रामचंद्राया राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय रखा गया
जगतगुरु रामचंद्राया राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय
             शैक्षणिक संस्थानो के अलावा उन्होंने शाहपुर में एक अस्पताल भी खोला है, इस अस्पताल का नाम उनके गुरु भगवान दास जी के नाम पर दिया गया. यही नही स्वामी जी ने गौ रक्षा और गरीबो के भोजन के लिए भी बहोत काम कर रहे है, उनके धाम जो की त्रिवेणी धाम के नाम से जाना जाता हे वहा ३ गौ शाला हे अवम उनमे १३०० से अधिक गौ माता की सेवा की जाती है.
गौ शाला ( त्रिवेणी धाम )
            श्री नारायणदास जी, महाराज श्री बाबा जी महाराज की सेवामे त्रिवेणी धाम वि.सं. २००४ में आ गये थे , तब से ही आश्रम का सब कार्यभार वे स्वयं देखने लगे,स्वामी जी का पदाभिषेक वि.सं. २०६0 दिनांक १ जनवरी २००४ में तीनो अनी अखाड़ो के श्रीमहंतो सहित भारत के समस्त संत समाज के द्वारा गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था. महाराज ने प्राणिमात्र के हितार्थ अपना जीवन समर्पण कर दिया है, उनके जेसा महापुरुष न वर्तमान में कोई हे ना भविष्य में होने की सम्भावना है, जन्होने जहा जिस वस्तु का अभाव देखा वहा वाही वस्तु सुलभ करवा दी, फिर वह शिक्षा हो,स्वास्थ हो,गौ सेवा हो,जन सेवा हो,अध्यात्मक बात हो,गुरु जी ने हर एक क्षेत्र में अपना योगदान दिया हे और उनका ये सेवा कार्य अविरत रूप से चल रहा हे..
त्रिवेणी धाम 

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